लेखनी कहानी -01-Sep-2022 सौंदर्या का अवतरण का चौथा भाग भाग 5, भाग-6 भाग 7 रक्षा का भारत आना ८भाग २१भ

38-डॉक्टर साहब भी दर्द में रोए-

  श्रवन की आंखों से आंसू की धारा बहने लगी। श्रवन तो जैसे डॉक्टर साहब  का ऋणी  हो गया था। डॉक्टर साहब के चरणों में बैठकर वह अपनी सारी व्यथा कह देना चाहता था।श्रवन बोला- हम तो उम्मीद हार बैठे थे, हमारी दुनिया सूनी होने जा रही थी। यह तो कहिए, श्रेया के माता-पिता अचानक उस दिन अस्पताल आए, और उन्होंने ही श्रेया की हालत देखकर कहा- कि अब हमें यहां से श्रेया को ले जाना चाहिए। किसी और अस्पताल में या किसी और डॉक्टर से बात करनी चाहिए। यह बात हम सभी को समझ में आई। और सभी की सहमति से श्रेया के माता पता ने ही हमें आपका पता खोज करके बताया। और अब हम श्रेया को आपके हॉस्पिटल तक ला पाए है। अगर हम श्रेया को यहां नहीं लाते तो श्रेया आज शायद ....हमारे साथ ना होती। तो हुए ना आप..... हमारे भगवान। श्रेया आज हमारे साथ है, तो उसकी वजह आप ही है। डॉक्टर साहब श्रेया के लिए बहुत खुश थे, उन्होंने कहा - श्रेया मेरी बेटी जैसी है। डॉक्टर का फर्ज है, कि मरीज की मदद करें.... उसको बचाने की कोशिश कर अपना फर्ज निभाए, मैंने वही किया है ।शुक्रिया अदा करना है.... तो भगवान का कीजिए ....मैं तो एक माध्यम हूं। भगवान का आदेश पालन करता गया.... और श्रेया की जान बच गई।

डॉक्टर साहब ने कहा .......कि यदि मैं भगवान होता तो.... क्या मैं अपनी बेटी की मदद नहीं करता। इससे सिद्ध होता है कि करने वाला तो भगवान ही है ,मैं तो एक माध्यम ही हूं। मेरे इलाज से श्रेया की सेहत ठीक हो गई। परंतु  दूसरी तरफ बहुत इलाज के बाद भी मेरी बेटी मां नहीं बन सकी। तो मैं क्या करूं, मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया हूं, अपनी बेटी के लिए बहुत दुखी हूं। अगर तुम लोग मेरी बेटी के लिए दुआ करोगे, तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा। शायद तुम्हारी दुआओं से मेरी बेटी भी मां बन जाए। क्योंकि मेरी बेटी भी बच्चे के लिए तड़प रही है।  बस मैं इतना ही चाहूंगा …...कि तुम मेरी बेटी के लिए दुआ करो, कि वह भी मां बन जाए। कहते कहते डॉक्टर साहब का दुख उनकी आंखों से उमड़ कर बाहर आ गया, और डॉक्टर साहब बिलख कर रोने लगे। डॉक्टर साहब की बात सुनकर तो श्रवण को लगाकर डॉक्टर साहब भी अंदर से बहुत दुखी हैं, अपनी बेटी को लेकर, क्योंकि उनकी बेटी भी मां नहीं बन पा रही है। इसके बारे में दीपक ने कई बार श्रवन से बात करनी चाही, परंतु कभी ऐसा मौका नहीं लगा कि वह खुलकर दीपक से बात कर पाता। श्रवन ने डॉक्टर साहब को ढांढस बंधाया और कहा कि आप निश्चिंत रहें, हम लोग उनके लिए दुआ भी करेंगे और जो हम से मदद हो सकेगी वह भी हम करेंगे। डॉक्टर साहब ने कहा.. ‌ ठीक है,अब घर जाओ और खुश रहो। बस ठीक है, श्रवन ने डॉक्टर साहब से कहा- कि  जी मैं श्रेया का पूरा ध्यान रखूंगा, कहकर उसने सहारा देकर श्रेया को अस्पताल के बाहर खड़ी अपनी गाड़ी में आकर बैठाया, और ड्राइवर से घर चलने को कहा- रास्ते में श्रवन और श्रेया आपस में बातें कर रहे थे,कि एक बच्चे को लेकर डॉक्टर साहब कितने परेशान हैं। उनकी बेटी भी मां नहीं बन पा रही है।  एक बच्चे की चाहत सभी को दीवाना बना देती है।श्रवन ने कहा- मैं दीपक से बात करूंगा और कोशिश करूंगा कि रानी भी मां बन पाए। भगवान ही सबका सहारा है। इतने में गाड़ी घर के दरवाजे पर पहुंच गई। ड्राइवर ने कहा- भैया घर आ गया है। श्रवन और श्रेया गाड़ी से उतरे, और घर के अंदर चले गए।

श्रेया और श्रवन अंदर पहुंचे तो देखा . ......नन्ही परी भूख से रो रही है। और सासू मां उसे चुप कराने की कोशिश कर रही है। सासू मां बेचारी क्या करें, नन्ही परी को कुछ खिला तो सकती नहीं है। उसे तो मां का दूध ही चाहिए।उसे अभी मां की जरूरत है। श्रेया ने जल्दी से हाथ धुल कर नन्ही परी को उठाया और उसको दूध पिलाने के लिए बैठ गई। श्रेया बेटी को दूध पिला कर बड़ा सुकून महसूस कर रही थी। क्योंकि उसकी छाती भी दूध से फटी जा रही थी।  और इधर नन्ही परी का भी पेट भर गया वह भी खुश हो गई और रोना बंद कर शान्त हो गई। बेटी को दूध पिलाकर श्रेया लेट गई । क्योंकि अस्पताल में उसे काफी देर बैठना पड़ा था। तो वह बहुत थक गई थी।और अभी अभी उसके टांके काटे गए तो उनमें भी उसको दर्द हो रहा था। श्रवन ने मां को बताया- कि श्रेया थोड़ी देर आराम कर रही है, मां ने कहा ठीक है, उसे आराम करने दो। इसलिए श्रवन बेटी को लेकर बाहर आ गया था। श्रवन ने बेटी को अपनी बहन रक्षा को दे दिया। रक्षा उसको लेकर खिलाने लगी। वैसे भी नन्ही परी बहुत ज्यादा किसी को परेशान नहीं करती है, रोती नहीं है.....उसको चाहे जो भी खिलाए सबकी गोदी में खुश रहती है। और ऐसे बच्चों को तो सभी खिलाना चाहते हैं। वैसे भी उनके घर में बहुत समय बाद नन्ही परी घर में आई है। इसलिए वह एक खिलौने की तरह ही सबकी गोदी में खेलती रहती है। उधर श्रेया थकी  हुई थी, इसलिए उसे नींद आ गई और वह सो गई।

इधर श्रवण को आज बहुत दिनों बाद मां की चिंता हुई, उसने पूछा- मां तुम तो इतने दिन से लगातार काम कर रही हो हॉस्पिटल में थी, और अब घर में भी।आई हो तब से घर में भी लगातार काम कर रही हो।तुम भी तो थक गई होगी श्रवन की यह बात सुनकर मां की आंखों में आंसू आ गए। मां कुछ कह ना सकी और बोली- मैं धन्य हो गई कि आज तुम्हें यह महसूस तो हुआ कि मैं भी कुछ कर रही हूं। मां ने मन ही मन श्रवन को आशीर्वाद दिया और कहा बेटा थक तो बहुत गई हूं, फिर भी मैं नहीं संभालूंगी तो कौन संभालेगा। आखिर मैं ही तो घर में सबसे बड़ी हूं, और मां की जिम्मेदारी होती है घर में सभी का ध्यान रखना। भले ही श्रेया मेरी बहू है, लेकिन मैं उसे अपनी बेटी ही मानती हूं। और जब कोई औरत मां बनती है, उस समय उसको मदद की बहुत जरूरत होती है। श्रेया ने तो बहुत कुछ झेला है। वह तो जिंदगी मौत से लड़ कर आ रही है। तो अभी तो मुझे उसकी मदद करनी ही होगी। जब तक वो ठीक नहीं हो जाती।  बाद में श्रेया का फर्ज रह  जाएगा । वह करना चाहेगी तो करेगी, नहीं चाहेगी तो नहीं करेगी। वह  तो उसकी मर्जी पर निर्भर करता है। कोई बात नहीं कुछ दिन में श्रेया ठीक हो जाएगी।तो सब कुछ ठीक हो जाएगा परेशानी के दिन आते हैं, तो परिवार ही उनको मिलकर  झेलता है

 और परिवार का संगठन परेशानी को विफल कर देता है जैसे कि हम सब ने परेशानी को हरा दिया है और अब सब ठीक है। कहा भी गया है।  कि '

संगठन में शक्ति है:।

कहकर मां रसोई घर में खाना बनाने चली गई। खाने का समय हो चुका था, और सभी को भूख लगी हुई थी।थोड़ी ही देर में मां ने सभी को खाने के लिए आवाज दी। मां ने कहा खाना तैयार है, सभी लोग हाॅल में आ जाए। आज मां को सभी  के साथ बैठकर बात भी करनी थी।

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10 Comments

Mithi . S

24-Sep-2022 06:08 AM

Bahut khub

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Bahut khoob 🙏🌺

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Sushi saxena

23-Sep-2022 10:54 AM

Behtarin rachana

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